Friday, April 30, 2010

जान पर अब बन आई है

कोपल अब है फुट रही,
आस पास के पेड़ो पर,
मन बेचैन हुआ मेरा भी,
तेरी आहट सुनने को..

देख बदल गया है मोसम ,
फिर रुत नई सी आई है,
छोड़ भी दे गुस्सा अब , तू जालिम,
ये कैसी तेरी लड़ाई है...

ना तू जीतेगा ,ना मैं जीतूंगी
और हम तुम सब खो बैठेगे ,
तू आजा ,या मुझे बुला ले,
जान पर अब बन आई है....

2 comments:

  1. कोपल अब है फुट रही,
    आस पास के पेड़ो पर,
    मन बेचैन हुआ मेरा भी,
    तेरी आहट सुनने को..

    कुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।

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  2. ना तू जीतेगा ,ना मैं जीतूंगी
    और हम तुम सब खो बैठेगे ,

    बहुत सुन्दर रचना ....अच्छी पंक्तियाँ

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