Saturday, April 24, 2010

अब हीर ना कहना कोई

राँझा राँझा करती नी मैं, आपे राँझा होई,
सब में मुझको तू ही दिखता, दिखता ना होर कोई....

तुझ में ही खो बैठी खुदको,रात रात ना सोयी,
हर रस्ते तू मिल जाता है, मिलता ना होर कोई...

तेरी बाते ही बस सुन पाती ,कान सुने ना गल कोई,
तुने कैसा किया दीवाना , मुझसा ना अब कोई,

तेरे संग लगा मन मेरा, तू मेरा हर कोई,
आवाज़ सुनी ना जिस दिन तेरी,रात रात मैं रोई....

नाम मेरा सब क्यों लेते है , ना राँझा कहता कोई,
मैं तुझ में, और तू अब मुझ में , अब हीर ना कहना कोई.....

1 comment:

  1. तेरे संग लगा मन मेरा, तू मेरा हर कोई,
    आवाज़ सुनी ना जिस दिन तेरी,रात रात मैं रोई....

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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