Friday, April 30, 2010

पर जान नहीं जाती ये

कितने ख़त लिखे मैंने ,
वादे भी किये कितने सारे,
तू फिर भी प्यार को समझा ना,
किये कितने जतन, अब हम है हारे...

रास्ता तो अब भी देख रहे ,
नेना मेरे रस्ते पे खड़े ,
शाम तलक तुझको ढूंडा ,
सुबह से फिर ये, दर पे लगे...

दिल मेरा अब तब रुक जाता है,
साँसे भी थम सी जाती है,
पर जान नहीं जाती ये फिर भी ,
तुझ पर आकर रुक जाती है...

4 comments:

  1. वाह भई ,....इंतज़ार का यही..रूप है ..एक अच्छी कविता ..बहुत पसंद आई ...बधाई स्वीकारे

    http://athaah.blogspot.com/

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  2. आपके ब्लॉग पर आकर ख़ुशी हुई ......परन्तु अफ़सोस भी हुआ !..अब तक इस से दूर जो था ....आपका ब्लॉग मेरी पसंद ....आपकी हर कोशिश ...कामयाब कोशिश

    http://athaah.blogspot.com/

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  3. कोशिश हमेशा करते रहना चाहिए

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  4. shivani ji aapne to pyar k intjar ko apne shabdo kuch is tarha se dhala h ki koi na chahte huye bhi pyar karne lage...............bahut hi achi or sarahniya kosis h apki..............

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