Saturday, May 1, 2010

सखी पिया को जो मैं ना देखु...

सखी पिया को जो मैं ना देखु, गुजारो कैसे अँधेरी रतिया,
के जिन में उनकी ही रौशनी हो, कही से ला मुझे वो अंखिया...

उन्ही को देखा ,उन्ही को चाहा, उन्ही को मैंने बताई बतिया ,
उन्ही के आने से दिल में हलचल ,उन्ही के जाते फिर काली रतिया...

उन्ही के बोलो को बोलती हू , उन्ही के रास्ते में है ये अंखिया ,
उन्ही के होठो की मैंने हँसी हू, उन्ही को पाकर है पायी दुनिया...

उन्ही के आते ही है रोनक , उन्ही के जाते फिर गम की गलिया,
उन्ही की आहट सुनने को मैंने ,गुज़री जाने हजारो सदिया...

सखी री वो मुझसे आज रूठे ,बताते नही वो दिल की बातिया ,
आँख नम है और होठ गुमसुम ,गुजारू कैसे ये पल पल सी सदिया...

उन्हें ये बोलो , बताऊ कैसे , के पल पल है भरी अब मेरे सजना ,
तुम्ही को मैंने माना दुनिया ,तुम्ही से खिलती चेहरे की कालिया...

1 comment:

  1. वाह भई ,..१ अब आपकी रचनाओं पर टिपण्णी मुश्किल है ..शब्द नहीं मिलते ...बहुत खूब ऐसा ही कुछ आज मैं लिखने वाला था ...पर मेरे मन की बात आपकी कलम से ...बहुत अच्छी प्रस्तुति ...वाकई शानदार बहुत ब्लॉग पढ़े है मैंने पर लगता तलाश आपके ब्लॉग पर आकर ही समाप्त हुई ...आपकी हर रचना मुझे पसंद है http://athaah.blogspot.com/2010/04/blog-post_29.html

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