Sunday, May 2, 2010

मेरा मन बेचैन है

पल जो होते पास तेरे कुछ , कुछ बातें हम से भी होती,
कुछ सपने हम भी बुन लेते ,मीठी सी कुछ राते भी होती,
मैंने तुझको कुछ राज़ बताती ,आँचल से मुख आपना छुपाती,
तेरे हाथो को ले हाथो में,तुझ में जैसे मैं खो जाती...

मन मन्दिर दिया पिया मैं ,तेरे हाथो से जलवाती,
तेरी आहट आँगन में होती,दर्पण में मैं मुझे सजाती ,
दरवाज़े पर तेरी दसक ,धड़कन मेरी और बढाती ,
तुझे देख नज़ारे झुकती,छूने से धड़कन थम जाती...

कुछ पल तेरे पास नही है , और मेरा मन बेचैन है,
मन की बाते मन ही में है, काली से काली रेन है ,
तेरे बीन मैंने क्यों बाकी हु , रास्ते पर हर पल नैन है ,
कब आओगे पिया कहो तुम, तुम बिन मन बेचैन है...

1 comment:

  1. प्रेम पर लिखना तो कोई आपसे सीखे .....बार-बार पढने पर भी जी नहीं भरता ....तारीफ़ भी क्या करे शब्द ही नहीं मिलते ......अति सुन्दर
    http://athaah.blogspot.com/2010/04/blog-post_15.html

    ReplyDelete