Thursday, September 17, 2009

मौका ही कब दिया

तुझसे मिलता भी तो मैने मिलता कैसे,
तुने कब मिलने का मौका ही दिया,
कहता हु मेरी ज़िन्दगी है तू,
पर तुने जिंदा रहने का मौका ही कब दिया...

तेरी आँखों के आंशु पूछ लेता मगर,
ज़मीन पर गिरते मोती समेट लेता मगर,
तू तो मुझसे हर दम खफा ही रही,
और मुझे मानाने का मौका ही कब दिया....

मैंने कब तुझसे बढ़ कर माना था मुझे,
मैंने तो बस तेरे नाम को सब माना था,
तू एक बार हाथ बढाती तो मेरी तरफ,
तेरे आपनो में मैं ही बस अंजना था...

आपने आप में मैंने डूब गया हु,
तेरे घर के सिवा हर घर भूल गया हु,
मैंने भी कुछ गुन गाता तुझे देख कर,
तुने पास आने का मौका ही कब दिया.....

2 comments:

  1. आपने आप में मैंने डूब गया हु,
    तेरे घर के सिवा हर घर भूल गया हु,

    bahut khoob kaha aapne

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  2. बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

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